लिखे होंगे शेर कई और लिखते रहेंगे शायरी कई
तेरे नाज़-ओ-अंदाज़ को बयां करने, लफ्ज़-ओ-अलफ़ाज़ कम है
चांदनी हो तुम मेरे हमनवाज-ओ-हमराज़ भी तुम ही हो
रौशनी तेरी डूबा देती है जश्न के प्यालों में
और कभी वही मिटा देती है आशिकी कि अश्कों में
पलते है फिर भी सोच-ओ-ख़याल तेरी आशिकाना चांदनी में
और रोते है हम अँधेरी रात में, तेरा निशान जो होता नहीं
आशिकी जगाती है मोहब्बत सजाती है
दिलकशी पूरी केह कशा को दिलाती है
पेश है इस भरत का नज़्म तेरे लिए पूनम
मिटेंगे जिस्म के साथ लफ्ज़ मेरे
पर जो मिटेगा नहीं वो तुम्हारी चांदनी ही है
तेरे नाज़-ओ-अंदाज़ को बयां करने, लफ्ज़-ओ-अलफ़ाज़ कम है
चांदनी हो तुम मेरे हमनवाज-ओ-हमराज़ भी तुम ही हो
रौशनी तेरी डूबा देती है जश्न के प्यालों में
और कभी वही मिटा देती है आशिकी कि अश्कों में
पलते है फिर भी सोच-ओ-ख़याल तेरी आशिकाना चांदनी में
और रोते है हम अँधेरी रात में, तेरा निशान जो होता नहीं
आशिकी जगाती है मोहब्बत सजाती है
दिलकशी पूरी केह कशा को दिलाती है
पेश है इस भरत का नज़्म तेरे लिए पूनम
मिटेंगे जिस्म के साथ लफ्ज़ मेरे
पर जो मिटेगा नहीं वो तुम्हारी चांदनी ही है
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