हमने ज़ाहिर किया और कबूल था उन्हें भी ये इश्क़ 
पर दस्तूर-ए-दुनिया से परहेज़ कैसे रोक पाते अपने अश्क़ 
रो रोके बिताये पल कई, और रोकर होगये आँखें खुश्क 
अब बैठे है हार कर, है तो है बस इस दुनियादारी से रश्क 
जो मेरी आशिक़ का दिल जीत गया, और हमे दिया सूखे अश्क़
 

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