बुझने न देना उस आस को, जिसके सहारे ज़िन्दगी समायी
उस आस ने कभी हसायी, तो कभी बहुत रुलाई
आस था, कि मैं अपनी ज़िन्दगी आपके साये में बिताऊ
फिर भी बितादी ज़िन्दगी, साथ लेकर तन्हाई
नहीं मिल सकते तो न मिलो
पर महसूस न करने देना उस आस से एक पल भी जुदाई
उस आस ने कभी हसायी, तो कभी बहुत रुलाई
आस था, कि मैं अपनी ज़िन्दगी आपके साये में बिताऊ
फिर भी बितादी ज़िन्दगी, साथ लेकर तन्हाई
नहीं मिल सकते तो न मिलो
पर महसूस न करने देना उस आस से एक पल भी जुदाई
No comments:
Post a Comment